सोमनाथ मंदिर में ‘बाण स्तंभ’ का रहस्य आज तक अनसुलझा

कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जो सदैव अनसुलझे रहले हैं, ऐसा ही एक रहस्य है गुजरात के सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में स्थ‍ित ‘बाण स्तंभ‘। सोमनाथ मंदिर का भी निर्माण कब हुआ था, ये किसी को नहीं पता, लेकिन इतिहास में इसे कई बार तोड़ा गया था और फिर इसका पुनर्निर्माण हुआ था। आखिरी बार इसका पुनर्निर्माण 1951 में हुआ था। मंदिर के ही दक्षिण में समुद्र के किनारे ‘बाण स्तंभ’ है, जो बेहद ही प्राचीन है।  मंदिर के साथ-साथ इसका भी जीर्णोद्धार किया गया है।


लगभग छठी शताब्दी से ‘बाण स्तंभ’ का उल्लेख इतिहास में मिलता है। इसका मतलब ये है कि उस समय भी यह स्तंभ वहां पर मौजूद था, तभी तो किताबों में इसका जिक्र किया गया है, लेकिन ये कोई नहीं जानता कि इसका निर्माण कब हुआ था, किसने कराया था और क्यों कराया था।


जानकार बताते हैं कि ‘बाण स्तंभ’ एक दिशादर्शक स्तंभ है, जिसके ऊपरी सिरे पर एक तीर (बाण) बनाया गया है, जिसका ‘मुंह’ समुद्र की ओर है। इस बाण स्तंभ पर लिखा है- ‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योर्तिमार्ग‘। इसका मतलब ये कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है।


सोमनाथ मंदिर का 'बाण स्तंभ' by google map
सोमनाथ मंदिर का ‘बाण स्तंभ’ by google map

इसका अर्थ ये है कि इस सीधी रेखा में कोई भी पहाड़ या भूखंड का टुकड़ा नहीं है। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या उस काल में भी लोगों को ये जानकारी थी कि दक्षिणी ध्रुव कहां है और धरती गोल है? कैसे उनलोगों ने इस बात का पता लगाया होगा कि बाण स्तंभ के सीध में कोई बाधा नहीं है? ये अब तक एक रहस्य ही बना हुआ है। सरल अर्थ यह कि सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्कटिका तक) एक सीधी रेखा खींची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता है। हालांकि श्लोक में भूखंड का उल्लेख नहीं है लेकिन अबाधित मार्ग का मतलब यह कि बीच में कोई भी पहाड़ का नहीं होना।


आज के समय में तो ये विमान, ड्रोन या सैटेलाइट के जरिए ही पता किया जा सकता है।


अब दक्षिणी ध्रुव से भारत के पश्चिमी तट पर बिना किसी बाधा के जिस जगह पर सीधी रेखा मिलती है, वहां ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जिसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला माना जाता है। ऐसे में बाण स्तंभ पर लिखे श्लोक की अंतिम पंक्ति ‘अबाधित ज्योर्तिमार्ग’ भी किसी रहस्य की तरह ही है, क्योंकि ‘अबाधित’ और ‘मार्ग’ तो समझ में आता है, लेकिन ज्योर्तिमार्ग क्या है, यह समझ से बिल्कुल परे है। परंतु कभी ना कभी इसका अर्थ व औच‍ित्य भी समझ में आ ही जाएगा।


इससे यह पता चलता है कि हमारे पूर्वज (भारतीय) नक्शा बनाने में निष्णात थे। लेकिन भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण धरती का पहला नक्शा बनाने का श्रेय ग्रीक वैज्ञानिक ‘एनेक्झिमेंडर’ (611-546) को दिया गया। लेकिन यह नक्शा अपूर्ण था, क्योंकि उस नक्शे में उत्तर और दक्षिण ध्रुव नदारद थे। नक्शे में वही भूखंड दिखाया गया था, जहां मनुष्य की आबादी थी। बाकी भूखंड का क्या? वास्तविक नक्शा तो हेनरिक्स मार्टेलस ने 1490 के आसपास बनाया था।


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